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बिहार में जाति गिनने पर केंद्र का SC में हलफनामा, राज्य के पास जातिगत जनगणना कराने का अधिकार नहीं

बिहार में जाति गिनने पर केंद्र का SC में हलफनामा, राज्य के पास जातिगत जनगणना कराने का अधिकार नहीं
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दिए अपने हलफनामे में कहा है कि किसी भी प्रकार के जनगणना का अधिकार राज्यों के पास नहीं है। अगर वह करते है तो वह संविधान के मूल भावना के खिलाफ होगा।

बिहार में जातीय जनगणना खत्म हो गई है। लेकिन इस पर राजनीति अब तेज होती जा रही है। जातीय गणना को लेकर आज सुप्रीम कोर्ट में आज फिर से सुनवाई हुई। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दिए अपने हलफनामे में कहा है कि किसी भी प्रकार के जनगणना का अधिकार राज्यों के पास नहीं है। अगर वह करते है तो वह संविधान के मूल भावना के खिलाफ होगा। बता दें इससे पहले कर्नाटक सरकार जातिगत जनगणना करा चुकी है। लेकिन उसकी रिपोर्ट आज तक सार्वजनिक नहीं की गई।

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केंद्र को जवाब देने के लिए SC ने दिया था एक हफ्ते का समय

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बता दें कि नीतीश सरकार ने इस साल के फरवरी महीने से बिहार में जातिगत जनगणना कराने की शुरुआत की थी। जिसके बाद इसे रोकने के लिए एक सोच एक प्रयास की ना के NGO की ओर से याचिका पहले पटना हाईकोर्ट फिर सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई थी। जिस पर सुनवाई के दौरान जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस भट्टी की अदालत से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इसमें 7 दिन का समय मांगा था। इसके बाद 28 अगस्त की तारीख दे दी।

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सर्वे का काम पूरा

इससे पहले कोर्ट में बिहार सरकार ने दलील देते हुए कहा कि राज्य में सर्वे का काम पूरा हो चुका है। सारे डाटा भी ऑनलाइन अपलोड कर दिए गए हैं। इसके बाद याचिकाकर्ता की ओर से डाटा रिलीज करवाने की मांग की थी। अब कोर्ट इस मामले को सोमवार को फिर सुनवाई करेगी।

राज्य की जनगणना संविधान के प्रावधानों के खिलाफ

बिहार के नालंदा निवासी अखिलेश कुमार की ओर से दायर याचिका में दलील दी गई कि जातिगत जनगणना कराने के लिए राज्य सरकार की तरफ से जारी अधिसूचना संविधान के प्रावधानों के खिलाफ है। संविधान के प्रावधानों के मुताबिक, केवल केंद्र सरकार को ही जनगणना कराने का अधिकार है।

पटना हाईकोर्ट ने एक अगस्त को बिहार सरकार को दी थी हरी झंडी

दरअसल, पटना हाईकोर्ट ने बिहार में जातीय जनगणना को लेकर उठ रहे सवालों पर सुनवाई की थी। चीफ जस्टिस के विनोद चंद्रन और जस्टिस पार्थ सार्थी की खंडपीठ ने लगातार पांच दिनों तक (3 जुलाई से लेकर 7 जुलाई तक) याचिकाकर्ता और बिहार सरकार की दलीलें सुनीं थी। इसके बाद एक अगस्त को पटना हाईकोर्ट ने सीएम नीतीश कुमार के ड्रीम प्रोजेक्ट को हरी झंडी दे दी। इसके बाद बिहार सरकार ने बचे हुए इलाकों में गणना का कार्य फिर से शुरू करवा दिया। बिहार सरकार के अनुसार, जाति आधारित गणना का कार्य पूरा हो गया है।

कर्नाटक में भी हो चुका है जातीय जनगणना

साल 2014 में कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार थी और सिद्धारमैया सीएम. चर्चा शुरू हुई की राज्य सरकार जातिगत जनगणना कराने जा रही है. इस पर विवाद शुरू हुआ तो सरकार ने इसका नाम सोशल एंड एजुकेशनल सर्वे 2014 नाम रख दिया. सर्वे अप्रैल-मई 2015 में शुरू हुआ. इसमें 1.6 लाख लोग लगे और 1.3 करोड़ घरों में सर्वे हुआ। इसके लिए राज्य सरकार ने 169 करोड़ रुपये खर्च किए। इस टास्क के डिजिटाइजिंग की जिम्मेदारी भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड को दी गई। हालांकि ये रिपोर्ट आज तक सार्वजनिक नहीं की गई है।

 
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